रोहित को ग़ज़लों का नया नया शौक़ चढ़ा था, दिन भर वह जगजीत सिंह जी द्वारा गायी गज़ले सुनता रहता था और गुनगुनाता रहता था , उर्दू के लब्जो का मतलब पता हो या न हो, बस अपनी धुन में रहता था और हर सीधी बात जवाब भी घुमा कर शेरोशायरी से करता था।
ग़ज़लों का असर रोहित पर कुछ ऐसा हुआ कि अब वह किसी से निगाहे मिलाना चाहता था। निगाहों की तलाश उसकी निगाहे उसके साथ में पढ़ने वाली दिव्या पर जा कर टिकी, निगाहे मिलने के बाद वह उसे अपना दिल दे बैठा, अब्दुल हमीद अदम की एक ग़ज़ल जबसे उसने जगजीत सिंह जी की आवाज़ में सुनी थी तब से वह उसी ग़ज़ल के नशे में था।
ग़ज़ल कुछ यूँ है।
हँस के बोला करो बुलाया करो।
आप का घर है आया जाया करो।
मुस्कुराहट है हुस्न का ज़ेवर।
मुस्कुराना ना भूल जाया करो।
हद से बढ़ कर हसीन लगते हो।
झूटी क़स्में ज़रूर खाया करो।
दिव्या को देख कर रोहित को ना जाने कितनी गज़ले उसे एक साथ याद आ जाती थी।
उसमे से कुछ है।
तेरे आने की जब ख़बर महके।
तेरी ख़ुशबू से सारा घर महके।
तुम को हम दिल में बसा लेंगे, तुम आओ तो सही ।
सारी दुनिया से छुपा लेंगे, तुम आओ तो सही ।
रोहित अपनी मोहब्बत का इज़हार इन ग़ज़लों से करना चाहता था, पर कमबख्त दिव्या को ग़ज़लों में कोई रुचि ही नही थी। उसे गज़ले बोर करती थी और दूसरी तरफ रोहित की तो रूह बसती थी, ग़ज़लों में। दिव्या को तो पंजाबी गाने और हनी सिंह पसंद थे और उन्ही की भाषा भी समझती थी। ग़ज़लों में कही गयी बाते, उसे समझ ही नहीं आती थी।
दिव्या और रोहित अच्छे दोस्त भी थे। वो अक्सर साथ बैठकर पढ़ाई करते थे, दोनों साथ लंच भी करते थे। दिव्या अक्सर उसकी पसंदीदा सब्जी भिंडीलाती थी। दोनों अक्सर लाईब्रेरी में साथ बैठ असैगनमेंट्स पूरा किया करते थे। दिव्या गणित में तेज़ थी और रोहित कम्प्यूटर्स में। दोनों एक दूसरे से सीखते थे। दिव्या के साथ रहने का वह कोई भी मौका नही छोड़ता था। रोहित दिव्या की आँखों में खो जाता था और यही गुनगुना देता।
तेरी आँखों में हम ने क्या देखा।
कभी क़ातिल कभी खुदा देखा।
जब भी दिव्या कॉलेज आती तो रोहित उसे हाय नहीं बोलता था वो बोलता था।
देखकर तुमको यकीं होता है।
कोई इतना भी हसीं होता है।
देख पाते हैं कहाँ हम तुमको।
दिल कहीं होश कहीं होता है।
दिव्या साथ चलते चलते कभी आगे बढ़ जाये, तो वह रुक कर उसे देखने लगती, तो वह दौड़ता हुआ उसके पास आता और बोलता :
हाए अंदाज़ तेरे रुकने का।
वक़्त को भी रुका रुका देखा।
कॉलेज के फेस्ट के दौरान दोनों ने साथ मे कुछ इवेंट्स में काम किया , और कुछ में भाग भी लिया। दोनों की केमिस्ट्री देखते ही बनती थी। हर जगह रोहित की आंखे बस दिव्या को ही ढूंढती रहती थी। रोहित बस एक ही काम था दिव्या के ख्यालो में दिन रात रहना और गज़ले सुनना। सोने से पहले अक्सर रोहित ये ग़ज़ल जरूर सुनता था।
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं।
तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं।
तबियत अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में।
हम ऐसे में तेरी यादों की चादर तान लेते हैं।
दूसरी तरफ दिव्या, उसे तो कुछ समझ नही आता था कि रोहित क्या कहना चाहता है। उसने रोहित के प्रेम भरी भावनाओ पर कभी भी कोई भी प्रतिक्रिया नही दी , हमेशा अनजान बनी रही। जैसे कुछ जानती ही न हो।
उसकी सुंदरता और प्रेम से भरी ग़ज़लों पर प्रतिक्रिया न पाकर अक्सर रोहित यही बोलता था।
जान के सबकुछ कुछ न जाने
हैं कितने अनजाने लोग।
रोहित का मानना था की मोहब्बत की ज़ुबान नहीं होती है , इसे निगाहों से बयां किया जाता है।
कौन कहता है मुहब्बत की ज़ुबाँ होती है
ये हक़ीक़त तो निगाहों से बयाँ होती है
रोहित सीधे सीधे मोहब्बत का इज़हार करना, अपनी मोहब्बत की तौहीन समझता, वो चाहता था कि दिव्या उसकी भावनाओं को खुद ही समझे और उसकी हमेशा उसके साथ रहे।
एक दिन रोहित का जन्मदिन था। जिसके बारे में सिर्फ दिव्या को ही पता था। रात 12 बजे फ़ोन की घंटी बजती है और उधर से दिव्या जन्मदिन की ढेरों बधाईयां देती है। रोहित का यह सबसे खूबसूरत पल था। उसकी रात आँखों में कटी, अगली सुबह रोहित जब कॉलेज आया तो दिव्या बाहर ही उसका इंतजार करती मिल गयी, दिव्या ने रोहित को जन्मदिन की ढेरो बधाइयाँ फिर से दी। रोहित बैग भर के टॉफियाँ लाया था, क्लास में बांटने के लिए।
दोनों क्लास में घुसे और दिव्या ने पूरी क्लास को रोहित के बर्थडे के बारे में बताया, फिर शरू हुआ बर्थडे का जश्न। तभी टीचर का क्लास में आना हुआ, सब शांत होकर अपनी सीट पर बैठ गए, दोनों क्लास में सबसे पीछे जा बैठे, चलती क्लास ने टॉफियाँ पास की जा रही थी, टीचर को भनक भी नही लगी की क्या हो रहा है। टॉफियों के साथ साथ एक पेपर भी घूम रहा था। सबने उस पर रोहित को जन्मदिन की बधाइयाँ लिख रहे थे। जैसे ही वो पेपर सबसे आगे बैठी निधि के हाथ लगा तब तक टीचर ने पूछा। क्या हो रहा है यह? पेपर अपने हाथ में उठाया और मुस्कुरा दिए। लास्ट में उन्होंने भी शुभकामनाये लिखीं , पेपर रोहित को बुलाकर उसे पकड़ा दिया।
टीचर के जाते ही शोर शरू हुआ। लंच पार्टी के लिए सब कैंटीन में इकट्ठा हुए, बबलू भाई के परांठे, प्लेट में सजाएं गए, परांठे बनाने की स्पीड और खाने की स्पीड में ज़मीन और आसमान का अंतर था। पराठे आते और गुम हो जाते। खूब मज़ा आया पार्टी में। पूरे दिन दिव्या रोहित के साथ रही, देर शाम तक दोनों साथ रहे है।
घर जाने से पहले रोहित बार बार यही गुनगुना रहा था।
एक वादा करो अब हम से न बिछड़ोगे कभी।
नाज़ हम सारे उठा लेंगे तुम आओ तो सही।
उस दिन के बाद क्लास के लोगो को लगने लगा कि दोनों के बीच मे कुछ चक्कर है , जब यह बात रोहित को पता लगी तो वह बहुत खुश था, कि उसका नाम दिव्या से जुड़ा। मन की मन रोहित दिन भर इस ग़ज़ल की इन लाइनों को गुनगुना रहा था।
क्या जाने किस अदा से लिया तू ने मेरा नाम।
दुनिया समझ रही है कि सब-कुछ तेरा हूँ मैं।
शफ़क़, धनुक, महताब, घटाएँ, तारे, नग़मे, बिजली, फूल।
उस दामन में क्या कुछ है, वो दामन हाथ में आए तो।
दिव्या के व्यव्हार में कोई परिवर्तन ही नही आया था, रोहित के साथ नाम जुड़ने पर वह सिर्फ खामोश रही । दिन यूँ ही बीत रहे थे, इम्तेहान आये और चले गए। कॉलेज की लम्बी छुट्टियाँ हुई। सब कुछ दिनों के लिए बिछड़ गए , दिव्या को छुट्टियों की शुभकामनाऐ देकर कर रोहित निकल पड़ा, यह गुनगुनाते हुए।
थक गया मैं करते करते याद तुझ को।
अब तुझे मैं याद आना चाहता हूँ।
छुट्टियों के बीच में ही प्रथम वर्ष का रिजल्ट आया। विकास ने क्लास में टॉप किया था। दिव्या चौथे नंबर पर थी। रोहित के नंबर्स तो ठीक थे पर टॉपर्स की लिस्ट में नहीं था। रोहित खुश था अपने नम्बरों से। वह तो पढ़ाई के साथ साथ ज़िन्दगी भी जी रहा था।
छुट्टियाँ खत्म हुई, रोहित ने कुछ दिनों के बाद कॉलेज जॉइन किया। कॉलेज में घुसते ही वह दिव्या को ढूंढने लगा, पर दिव्या तो क्लास में थी ही नही। दोस्तो ने बताया कि वह कॉलेज तो आयी है, पर क्लास में नही है। रोहित ने दिव्या को ढूंढता हुआ कॉलेज की कैंटीन में जा पहुँचा। तो वह देखता क्या है।
दिव्या विकास के साथ बैठी थी, ख़ामोशी से, रोहित भी चाय और समोसा लेकर उन्ही के पास जा कर बैठ गया। दिव्या और विकास दोनों अपनी बातों में इतना व्यस्त थे कि उन्हें अहसास ही नही हुआ कि रोहित पास आ कर बैठ गया है।
दोनों आपस में अपनी अपनी पसंदीदा चीज़ों की चर्चा कर रहे थे। तभी दिव्या बोलती है कि मेरा पसंदीदा एक्टर जॉन अब्राहिम है, उसका एक्शन और उसकी बॉडी मुझे बहुत पसंद है। रोहित जो कि पास ही बैठा था और बोला
मैं जॉन अब्राहम जैसा लगता हूँ न।
तभी पूरी कैंटीन में बैठे सरे लोग हँसने लगे , पूरा माहौल ही बदल गया। सब रोहित को ही देख रहे थे। दिव्या ने रोहित को देखा और मुस्कुरा दी । दिव्या के आँखों में जो चमक पहले दिखती थी अब वह दिख नहीं रही थी। उसके बाद दिव्या ने मानो रोहित को इग्नोर कर, वह विकास से साथ चली गयी। रोहित आचंभित रह गया। उसे समझ नहीं आ रहा था की क्या हुआ। फिर उसके मुँह से अचानक निकल गया।
किया है प्यार जिसे हम ने ज़िंदगी की तरह।
वो आश्ना भी मिला हम से अजनबी की तरह।
बढ़ा के प्यास मेरी उस ने हाथ छोड़ दिया।
वो कर रहा था मुरव्वत भी दिल-लगी की तरह।
रोहित उठा और क्लास में जा बैठा। दिव्या ने कोई क्लास नही की,दोनों की ठीक से बात भी नही हुई ,देर शाम वह अपने घर जाती हुई दिखी।
दिव्या अक्सर क्लास से गायब ही रहती थी, और कभी आती भी थी तो विकास के साथ ही बैठती थी। रोहित से दिव्या की बात अब ना के बराबर होती थी और गलती से भी उसकी नज़र मिल भी जाये तो निगाहे पलट लेती थी।
गुस्से में रोहित के मुँह से निकल गया।
हम को दुश्मन की निगाहों से न देखा कीजिये।
प्यार ही प्यार हैं हम, हम पे भरोसा कीजिये।
कुछ दिनों के बाद रोहित को पता लगा कि विकास ने दिव्या को अपना प्रेम प्रस्ताव भेजा है और दिव्या ने उसे स्वीकार भी कर लिया है। रोहित को कुछ समझ नही आ रहा था कि वह क्या करे? दिव्या से बात करने की बहुत कोशिश की पर बात न हो पाई, दो दिन उसने ग़म में बिताए, उसका उतरा हुआ चेहरा देख उसकी बड़ी बहन ने बोला, लड़कियों को सब पता होता है कि कौन किस निगाह से देख रहा है। उन्हें कोई प्यार करता है इसका अंदाज़ा हो जाता है, कोई किसी पर अपना प्रेम थोप नही सकता है। तभी दीदी ने उसे इस ग़ज़ल से उसे समझाया।
जिस की आवाज़ में सिलवट हो निगाहों में शिकन।
ऐसी तस्वीर के टुकड़े नहीं जोड़ा करते।
लग के साहिल से जो बहता है उसे बहने दो।
ऐसे दरिया का कभी रुख़ नहीं मोड़ा करते।
जागने पर भी नहीं आँख से गिरतीं किर्चें।
इस तरह ख़्वाबों से आँखें नहीं फोड़ा करते।
शहद जीने का मिला करता है थोड़ा थोड़ा।
जाने वालों के लिए दिल नहीं थोड़ा करते।
अगर दिव्या, विकास से प्रेम करती है तो वह कुछ नही कर सकता। किसी को चाहना तो उसके बस में है पर किसी से प्रेम करवाना उसके बस में नही। अब रोहित ग़म से भरी गज़ले सुनाता था।
सदमा तो है मुझे भी कि तुझसे जुदा हूँ मैं।
लेकिन ये सोचता हूँ कि अब तेरा क्या हूँ मैं।
सितम तो ये है कि वो भी न बन सका अपना।
क़ुबूल हम ने किए जिस के ग़म ख़ुशी की तरह।
दीदी के कहने पर रोहित, सामान्य जीवन जीने की कोशिश करने लगा। किसी हद तक वो सफल भी हो रहा था। जब आप किसी से प्रेम करे तब उसके साथ आपके रिश्ते सामान्य नही रहते, विशेष हो जाते है।
ग़मज़दा रहने की जगह उसने ज़िन्दगी को चुना।
फिर भी अपने आपको सामान्य रखते हुए, कॉलेज के सुनहरे दिन बीत रहे थे। दिव्या अब विकास की हो चुकी थी, उनके प्रेम की चर्चा हर तरफ थी । जिसे भी देखो उन्ही कें चक्कर पर चर्चा में व्यस्त था।
डेट पर जाने की कौन कौन सी जगहे ठीक है , यह चर्चा भीसामान्य थी। रोहित, विकास से जब भी मिला, तो उसे यह अहसास ही नहीं होने देता की वो दिव्या से प्रेम करता है। अब रोहित, दिव्या जब भी मिलता तो उसे गज़ले नहीं सुनाता था। कुछ ही शब्दों में बात पूरी हो जाती थी।
इसी आपाधापी में 3 बरस कैसे बीत गए पता ही नही चला। तभी कॉलेज खत्म होने को आया। आखिरी एग्जाम दिया सबने। एक दूसरे को विदाई दी और सभी संपर्क में रहेंगे यह वादा किया। दिव्या अपने ही रंग में झूमती लहराती हुई कॉलेज से बाहर जा रही थी। थोड़ी ही दूर विकास अपने दोस्तो से बात कर रहा था।
तभी मेरे ही कॉलेज का एक लड़का अपने हाथो में गुलाबो का गुलदस्ता लिए उसकी तरफ बढ़ा चला आ रहा था। जैसे ही वह दिव्या के पास पहुँचा, गुलदस्ता दिव्या की तरफ बढ़ा दिया और अपने प्रेम का इज़हार करने लगा। विकास भी दूर से सब देख रहा था, पर कुछ कर नहीं रहा था।
दिव्या सहम गई, और उसने गुलदस्ता लेने से मना कर दिया, और आगे बढ़ गयी। थोड़ी दूर और चली तो उसे किसी और लड़के ने अपना प्रेम प्रस्ताव दिया वही गुलदस्ता देखर। दिव्या कुछ और सहम गयी, वह इधर उधर देख रही थी मानो वो विकास को ढूंढ रही हो, पर विकास दूर खड़ा सब देख रहा था। कॉलेज से बाहर निकलते निकलते उसे 5 प्रेम प्रस्ताव मिल चुके थे। पांचो विकास के परम मित्रो में थे।
तभी दिव्या की नज़र रोहित की तरफ भी गयी, रोहित खामोशी से सब देख रहा था। दिव्या की आंखे आंसुओ से भर गई थी। रोहित का मन किया उसे अपने बाहों में भर ले और उसे इन सबसे दूर ले जाये।
किस किस का नाम लाऊँ ज़बाँ पर कि तेरे साथ।
हर रोज़ एक शख़्स नया देखता हूँ मैं।
पहुँचा जो तेरे दर पे तो महसूस ये हुआ।
लम्बी सी एक क़तार में जैसे खड़ा हूँ मैं।
कॉलेज खत्म हुआ, डिग्री लेने हम सब दोबारा कॉलेज में इकट्ठा हुए। रोहित की आंखे दिव्या को ढूंढ रही थी कि उसे एक बार और देख ले। पर वो कही नही थी, तभी किसी ने बताया कि अब विकास और दिव्या में ब्रेकअप हो गया है। विकास ने दिव्य को बोला है कि उन दोनों का रिश्ता सिर्फ कॉलेज तक ही था। विकास ने दिव्या को बोला कि उसके घरवाले दिव्या को कभी भी स्वीकार नही करेंगे। इसलिए अब दोनों के रास्ते अलग अलग है।
इतना सब होने के बाद दिव्या गुम हो गयी। वह फिर कभी दिखाई नही दी, ना किसी सोसल मीडिया पर और ना ही कभी अपने घर पर। उसके साथ बाद में क्या हुआ, कभी पता नही लगा। बरसो बाद रियूनियन में भी उसकी कोई खबर नही थी।
सब अपनी ज़िंदगी मे व्यस्त हो गए, रोहित अब एक बड़ी कंपनी में काम करने लगा था, वह अपने माँ बाप के साथ एक बड़े शहर में रहने लगा था। एक स्टैंड उप कॉल उसे पता लगा कि अमरीका में उसकी कंपनी में उसके प्रोजेक्ट में एक लड़की ने जॉइन किया है उसका नाम दिव्या है।
टीम कॉल पर जब वो अपना इंट्रोडक्शन दे रही थी तो रोहित को उसकी आवाज़ कुछ जानी पहचानी सी लगी। वीडियो कॉल तो थी नही की वह झट से पहचान लेता, तो रोहित ने इग्नोर कर दिया, दूसरे दिन जब कॉल हुई तो बात थोड़ी और हुई, रोहित को शक होने लगा कि कही ये वो तो नही, तभी ने दिव्या को कॉल रिक्वेस्ट भेजी, दिव्य कॉल पर जैसे ही आयी रोहित ने उसे पूछा कि तुम इस कॉलेज से हो?
दिव्या के हाँ कहते ही रोहित ने झट से बोला कि वो रोहित है। उसका क्लास मेट।
दिव्या भी पहचान गयी, फिर दोनों में पर्सनल नंबर पर बात होना शरू हुई, तब दिव्या ने बताया कि कॉलेज खत्म होने के बाद अमेरिका आ गयी यही। यही उसने जॉब करना शरू कर दिया था। विकास से ब्रेकअप के बाद वह टूट गयी थी, उसके अपने घरवालों को पूरी बात बताई थी, उसके पापा ने उसका हौसला बढ़ाया और अमरीका में अपने भाई के पास भेज दिया। तबसे वह यही रह रही है।
कुछ दिन बाद रोहित को मौका मिला अमरीका जाने का, रोहित के अंदर दिव्या मिलने की इच्छा चरम पर थी। वह उससे मिलने चाहता था पर इस बार वह सामान्य रहकर मिलना चाहता था। अब नही चाहता था कि उससे मिलकर वो फिर से ग़ज़लों में बात करे।
वह घंटो का सफर तय कर अमरीका पहुचा, दिव्या उसे लेने एयरपोर्ट पर आई थी। दिव्या को देख कर अंदर ही अंदर रोहित खुश तो बहुत था पर चेहरे पर कोई भाव नही आने देना चाह रहा था। दिव्या ने उसे होटल में छोड़ा और अपने घर चली गयी।
दूसरे दिन दोनों आफिस में मिले, दोनों एक ही टीम में थे, तो पास ही बैठे। ऑफिस में तो मौका नही मिलता था पर्सनल बात करने को, दिव्या घर जाते उसे होटल छोड़ दिया करती थी। धीरे धीरे दोनों एक दूसरे के साथ फिर से सहज होने लगे थे। वीकेंड में अक्सर दिव्या उसे शहर घुमाती थी। और वीक डेज में दोनों साथ काम करते थी।
दिव्या ने एक दिन रोहित से बोला कि अब तुम पहले जैसे नही रहे, स्मार्ट हो गए हो। अब तुम गज़ले भी नही सुनते हो, तुम्हारे काम की चर्चा यहां बहुत होती है। सारे मैनेजर तुम्हारे फैन है। दिव्या ने रोहित के तारीफों के पुल बांध दिए।
रोहित को अहसास हो रहा था कि अब दिव्या में उसके लिए कुछ प्रेम भाव बढ़ रहा है।
ऐसे ही किसी वीकेंड में रोहित ने हिम्मत जुटा कर दिव्या से पूछ ही लिया कि,
क्या उसे पता था कि वह उससे प्यार करता था?
गज़ले क्या सच मे उसे समझ नही आती थी?
उसकी तरफ से क्या कभी भी कुछ नही था?
दिव्या इस विषय पर बात नहीं करना चाहती थी, बात को टाल वह घर वापस चली गयी। एक वीकेंड फिर वो मिली तब रोहित ने बोला की आज नहीं तो कल मेरे प्रश्नो का जवाब देना ही पड़ेगा।
तभी दिव्या बोलती है कि उसे सब पता था, की वह उससे प्यार करता था। उसे प्यार जताने का अंदाज़ पसंद तो था, पर वो आउटडेटेड था। सिर्फ प्यार से ज़िन्दगी नहीं कटती है, तुम एक एवरेज लड़के थे, तुमसे मुझे प्यार मिलता और बस प्यार ही मिलता। विकास में सबकुछ था, वह टॉपपर होने के साथ साथ एक संपन्न परिवार से भी था। ज़िन्दगी को लेकर उसके भी कुछ ख्वाब थे , वो सिर्फ विकास ही पूरा कर सकता था न की तुम।
फिर दिव्या बोलती है : विकास ने जब टॉप करने के बाद वह उसे पसंद करने लगी थी। छुट्टियों के बाद जब हम कॉलेज वापस आये तो ज़यादा लोग नहीं थे क्लास में। उसी दौरान विकास में मेरी बाते होना शरू हुई थी और नज़दीक आए । विकास ने नही, उसने खुद ही विकास को प्रपोज किया था, फिर कुछ दिन बाद उसने एक्सेप्ट कर लिया था। हमने अपने सुख दुःख साझा किये। ताउम्र साथ रहने की कसमें खाई। मैंने तो अपने घर में भी बता दिया था की हम एक दूसरे को पसंद करते है और उम्र साथ बिताने का फैसला किया। विकास के बारे में जानकर मेरे पिता जी भी रिश्ते के लिए राज़ी हो गए थे।
फिर अचानक एग्जाम के आखिरी दिन क्या हुआ पता नहीं। उसके साथ के सरे लोगो ने उसे एक एक कर प्रोपोज़ किया। विकास बस देखता ही रहा मुझे रोता हुआ देख मेरे पास नहीं आया मुझे संभालने। मैं रोते हुए वहां से निकली। मैंने तुम्हे भी देखा था, तुम्हारे अंदर का गुस्सा समझ सकती थी।
रास्ते भर मै विकास को फ़ोन करती रही पर उसने फ़ोन नहीं उठाया। ना ही दोबारा फ़ोन किया उठाया। मैंने जब यह बात अपने माता पिता को बताई तो उन्होंने मुझे संभाला और कहा की तुम आगे अपनी ज़िन्दगी अमेरिका में गुज़ारो अपने चाचा चाची के साथ। फिर मै अमेरिका आ गयी। तब से यही हूँ।
रोहित चुपचाप सब सुनता रहा। जब दिव्या की बात पूरी हुई, तो दिव्या देखती क्या है, रोहित की आंखे आंसुओ से भरी थी, पर वह कुछ बोल नहीं रहा था, दिव्या बोली अब तुम पुराने रोहित नहीं रहे, बदल चुके हो। आंखेमलता हुआ रोहित उठा और वहां से चला गया।
रोहित ने अगले ही दिन भारत की टिकट कराई और वापस आ गया। दिव्या उसे कॉल करती रही पर उसने नहीं उठाया। घर आकर रोहित ने अपने माँ बाप से उसके लिए रिश्ता ढूंढने की बात कही और बोला की अब वह तैयार है नयी ज़िन्दगी के लिए।
रोहित भारत आते ही नयी नौकरी की तलाश में जुट गया और कुछ दिनों क बाद उसे मिल भी गयी। शादी की तैयारियाँ ज़ोरो पर थी, जिस लड़की से उसकी शादी तय हुई थी उसे वह पहले से नहीं जानता था। वह उसके पापा के दोस्त के भाई की बेटी थी। उसका नाम रोहिणी था। सगाई होने के बाद दोनों की बात होना शरू हुई थी। वह भी एक टीचर थी, शहर के बड़े स्कूल में पढ़ाती थी। ज़िन्दगी से उसे ज़्यादा चाहते नहीं थी, वह बस प्रेम और शांति से भरी ज़िन्दगी जीना चाहती थी।
शादी की तैयारियों के बीच एक दिन रोहित के दरवाज़े की घंटी बजती है और बड़ी बहन आकर रोहित को बोलती है की दिव्या आयी है उमसे मिलने, दरवाज़े पर ही खड़ी है।
रोहित चौंक जाता है, और बोलता है दिव्या आयी है , कौन दिव्या ?
बहन बोलती है कितनी दिव्या को तुम जानते हो।
रोहित दरवाज़े की तरफ जाता है और बोलता है की तुम ?
तभी दिव्या बोलती है तुम बिना बताये अचानक भारत आ गए, उसके बाद तुमने कभी मुझसे बात ही नहीं की। मैंने सोंचा खुद जा कर देखती हम क्या हाल है तुम्हारा। रोहित दिव्या को घर के अंदर बुलाता है पर हो अंदर नहीं आती है। बोलती है मुझे तुमसे कुछ बात करनी है थोड़ा वाक पर चले।
रोहित बोलता है अभी ?
दिव्या : हाँ अभी नहीं तो कभी नहीं।
घर में बता कर दोनों बहार निकल पड़ते है।
थोड़ी दूर चलने के बाद दिव्या , रोहित से बोलती है, उसने उसके साथ जो कुछ भी किया वह उसके लिए माफ़ी मांगती है। तुम्हारा प्यार समझ कर भी मै नासमझ बानी रही। तुम्हे जो कुछ भी तकलीफ हुई है उसके लिए मुझे माफ़ कर दो।
जब से तुम अमरीका से वापस आये हो तब से मै तुम्हारे बारे में ही सोंच रही हूँ। दिन रात बस तुम्हारे बारे में सोंचती रहती हूँ। अब मुझे तुमसे प्यार हो गया है, मै अब तुम्हारी बन कर रहूंगी। आज मुझे अहसास हुआ है की तुम्हे कितनी तकलीफ हुई होगी जब मैंने तुमसे अजनबियों जैसा व्यवहार किया था। पर अब मै बदल गयी हूँ। पुरानी दिव्या मर चुकी है। अब मुझे तुमसे प्यार है, बस तुम मेरे हो जाओ।
तभी रोहित के कानो में रोहित -रोहित की आवाज़ उसके कानो में पड़ती है। जैसे कोई उसे दूर से बुला रहा हो। जैसे ही रोहित पीछे मूड़ कर देखता है, गोल चश्मा पहने उसकी मंगेतर रोहिणी भागते हुए उसकी तरफ आ रही है। पास आते ही रोहित उसे अपनी बाहों में भर ले लेता है। रोहिणी दिव्या को देखकर उसे पहचान जाती है और उसे उसके नाम से बुलाती है। रोहिणी उसे अपनी शादी में शामिल होने का इनविटेशन देती है।
फिर रोहित रोहिणी के साथ निकल जाता है अपनी नयी ज़िन्दगी से साथ नए रंग भरने को।
चलो बाँट लेते हैं अपनी सज़ाएं।
ना तुम याद आओ ना हम याद आएं।
सभी ने लगाया है चेहरे पे चेहरा।
किसे याद रखें किसे भूल जाएं।